चिंतन:समझिए सामर्थ्यवान और शीलवान का अंतर..
राधे – राधे
आज का भगवद् चिन्तन
शीलता का बल
सामर्थ्यवान होने पर भी मनुष्य किसी-किसी को जीत सकता है लेकिन शीलवान होने पर वह सबके हृदय को जीत लेता है। सामर्थ्यवान होना अच्छा है पर सामर्थ्य के साथ-साथ शीलवान होना उससे बड़ी बात है। दुनिया सामर्थ्य की वजह से किसी को ज्यादा दिन याद नहीं रखती पर अपने सद्गुणों और अपनी शीलता से व्यक्ति समाज में अमरत्व को प्राप्त कर लेता है।
वो बल किसी काम का नहीं जो स्वयं को छोड़कर दूसरों को झुकाने में लगा रहता है। समर्थता के साथ विनम्रता का आ जाना ही जीवन को महान बनाता है। सामर्थ्य आते ही व्यक्ति के अन्दर स्वयं के सम्मान का भाव भी जागृत हो जाता है। हमारा जीवन सम्मान पाने की चाह रखने वाला नहीं अपितु सम्मान देने वाला होना चाहिए। बल का उपयोग स्वयं सम्मान प्राप्त करने के लिए नहीं, दूसरों के सम्मान की रक्षा के लिए करना ही उसकी सार्थकता है।
गौभक्त श्री संजीव कृष्ण ठाकुर जी
श्री त्र्यंबकेश्वर धाम
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