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चिंतन:जिस प्रकार शीतलता जल का मूल स्वभाव है,उसी प्रकार शांती हमारा भी निज स्वरूप है…

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राधे – राधे

 आज का भगवद् चिन्तन

स्वरूप को पहचानें

जिस प्रकार शीतलता जल का मूल स्वभाव है,उसी प्रकार शांती हमारा भी निज स्वरूप है। इंद्रियों की उच्छृंखलता के कारण ही हम अशांत बने रहते हैं। कपडों में चमक साबुन से नहीं आती, साबुन तो केवल उन पर लगी गंदगी को साफ करता है। ऐसे ही शांति भी कहीं बाहर से नहीं मिलेगी,वह तो प्राप्त ही है बस हम ही अपने स्वरुप को विस्मृत किये हैं।

औषधि केवल रोग निवृत्ति के लिए होती है, स्वास्थ्य के लिए नहीं, स्वास्थ्य तो उपलब्ध है। जिस प्रकार सड़क पर चलते समय हमें स्वयं वाहनों से अपना बचाव करना पड़ता है, उसी प्रकार कलह, क्लेश और क्रोध की स्थितियों से भी विवेकपूर्वक अपना बचाव करना होगा। एक कुशल नाविक की भाँति तेज धार में समझदारी पूर्वक जीवन रुपी नाव को शांति और आनंद के किनारे पर पहुँचाने के लिए प्रतिदिन प्रयत्नशील बने रहो।

गौभक्त श्री संजीव कृष्ण ठाकुर जी
श्रीधाम वृन्दावन

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सूचना :- यह खबर Admin Team AB Live News , के द्वारा अपडेट की गई है। इस खबर की सम्पूर्ण जिम्मेदारी Admin Team AB Live News की होगी। www.ablivenews.com या संपादक मंडल की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी।

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